Thursday 8 October 2015

दादरी का दर्द ना समझे कोय !

उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के दादरी के विसहेड़ा गांव के रोता-विलखता ये परिवार इकलाख का परिवार है जिस इकलाख को गांव वालों ने पीट-पीट कर मार डाला इकलाख की मौत नहीं हुई उसे मार दिया गया उसकी मौत का निमंत्रण विसहेड़ा गांव के मंदिर के लाउडस्पीकर से आया जिस मंदिर से  एलान हुआ कि इकलाख का परिवार बीफ खाता है और अपने घर में बीफ रखता है इस लाउड स्पीकर से एलान के बाद गांव के लोग लाल हो गए और गांव में अफवाह फैला कि इकलाख का परिवार बीफ खाता है और इस अफवाह के आधार पर ग्रामीणों ने इकलाख को उसके घर से निकालकर उसे पीट-पीट कर मार डाला और मौत के मुंह में डाल दिया एक अफवाह से इकलाख की हत्या हो गई और बिसहेड़ा गांव उसकी मौत का तमासा देखता रहा...देखता रहा कि इकलाख की मौत कैसे होती है बिसहेड़ा गांव के बेदर्द लोगों ने इकलाख के बेटे को पीट-पीट कर अधमरा कर दिया आज अस्पताल में वो अपनी जिंदगी मौत के बीच झूल रहा है और राजनेता उसे अपने बयानों से झूला रहे है आज सियासत के दूल्हे बताने पर उतारु है कि मैं समाजवादी हूं , धर्मनिरपेक्ष हूं और तूं सांम्प्रादिक है ऐ बताने के लिए राजनेता दादरी का दर्द समझे बिना बिसहेड़ा गांव में बसने पर तूल गए है और सभी बताने की हर कोशिश कर रहे है हम दादरी के दर्द में हमदर्द हैं... दादरी में पुलिस प्रशासन है मगर इस गांव आज भी आशंति है...

सियासतदान कहते है सियासत ना हो लेकिन ऐसे-कैसे हो सकता है कोई राजनेता किसी के शव पर अपनी सियासत की चिंगारी को न भड़काए ये कैसे हो सकता है कोई राजनेता किसी के खून से अपनी राजनीति को रसदार ना बनाएं आखिर क्यों नहीं समाजवाद की सरकार दंगों पर काबू पाती है क्या मान लिया जाय कि राजा अखिलेश के राज में उत्तर प्रदेश दंगा प्रदेश बन गया है ये सवाल इसलिए क्योकिं मुजफ्फरनगर से दादरी तक समाजवाद के आंचल तले कई कई मांओं की आंचल उजड़ गई कई सुहागिने बेरंग हो गई और कई बच्चे अनाथ हो गए और अखिलेश कहते प्रदेश में सब प्रसन्न हैं...दादरी के दर्द में कोई हमदर्द तो नहीं बना लेकिन राजनीति सबने की अपने बयानों से राजनेताओं ने दादरी के दर्द और बढ़ा दिया दर्द को नासूर बना दिया ऐसा दर्द दिया जो कभी भर न सके...राजनेताओं ने इकलाख के परिवार के जख्मों पर मरहम तो नहीं लगाया लेकिन बेसहेड़ा गांव में जा-जाकर दादरी , बिसहेड़ा और इकलाख के परिवार के दर्द को दोगुना कर दिया..दादरी का दर्द ना जाने कोय


दादरी के दर्द को न जाने न समझे बिना कोई इसे हादसा बताता है कोई इसे हिंदू राष्ट्र बनाने की साजिश तो कोई गाय को माता बताकर मरने और मारने पर तुला है इन नेताओं के बयानों को सुन लें तो आपका और हमारा सर शर्म से थोड़ा और झुक जाए..


लेकिन यूपी के सामजवाद की सरकार को इन बयानों से शर्म नहीं आती बल्कि सियासत तेज हो जाती  है..दादरी आज ग्रेटर नोएडा का छोटा सा गांव नहीं रह गया बल्कि राजनीतिक पर्यटन स्थल बन गया है देश से बड़े से बड़े नेता आज दादरी जाने को ललाइत है जैसे दो माह का बच्चा अपनी मां का दुध पीने को छछनता है लेकिन दादरी का दर्द कोई नहीं समझता है जैसे किसी गांव में जानवर के मार जाने पर उसे खाने के लिए गिद्धों का तांता लग जाता है वैसे ही इकलाख के शव पर सियासत करने के लिए सियासी गिद्दों की लाइन लगी है..

देश का कोई नेता नहीं बचा है जिसने दादरी का दौरा ना किया हो लेकिन दर्द तो किसी ने नहीं समझा सियासत सभी ने की कोई विदेश से आता है बिहार चुनाव प्रचार छोड़कर दादरी का दौरा करता है अखिलेश के मंत्री ही अखिलेश को आंखें दिखा रहे है दादरी दंगे को मुलायम की नाकामी बता रहे है लेकिन अखिलेश ने अपनी नाकामी को छुपाने के लिए 40 लाख का मरहम लगाते है ताकि दादरी के दर्द तले अपनी नाकामी को छुपा सकें...दादरी का दर्द ना समझे कोय


No comments:

Post a Comment