संत के सामने बेबस सराकर
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संत रामपाल पर एक हत्या का आरोप है लेकिन रामपाल को रहनुमा मानने वाले संत रामपाल को कबीर का रूप मानते है जबकि पुलिस इसके विपरित रामपाल को आरोपी, दोषी, हत्यारा मानती है और कहती है बाबा को बर्दास्त नहीं किया जाएगा...किसी भी धार्मिक संस्कारों , हिंदू रीति रिवाजोें , पुण्य प्रताप के कामों को ना मानने वाला रामपाल पूरी तरह से हिंदू संस्कारों, सभ्यताओं, संस्कृतियों का विरोध का करता है..... रामपाल पर रार उस समय शुरु हुआ बाबा को कोर्ट द्वारा आदेश आया कि संत को न्यायालय के सामने पेश होना है पर संत ने कोर्ट के समन को सम्मान देने के बाजाय सामाजिक सियासत पर जोर दिया और अपने समर्थकों को पुलिस से भिड़ने के लिए छोड़ दिया..... हालात ऐसे बन गए कि हिसार की हिंसा और हिंसात्मक हो गई..और परिणाम कि संत के सामने एक लोकतांत्रिक सरकार लंगड़ी, रेंगती, बेबस और लाचार दिखनी लगी... सरकार के हजारो बाबू बाबा के सामने के बेबस और बंधुआ नजर आए...
रामपाल को रहनुमा मानने वाले संत के समर्थक सांसे बांध संत की सलामति के लिए आश्रम के सामने पुलिस और बाबा के बीच रोड़ा बन बैठे..इसी बीच आश्रम के अंगद बाबा के प्रवक्ता का बयान आया नहीं बताउंगा कि रामपाल कहा है...इलाज के लिए किसी गुप्त जगह है रामपाल...रामपाल अपने को कबीर का रूप मानता है पर कबीर वाणी को भूल महिलाओं और बच्चों के साथ ये बाबा बर्बरता कर रहा है...
बेकाबू बाबा को काबू करने की जोर लगाती पुलिस प्रशासन ने हिसार की हिंसा को हवा देते हुए आसु गैस के गोले छोड़े तो बाबा के समर्थकों ने आत्मदाह करने कि कोशिश, हवाई फायरिंग करते हुए पुलिस को हद में रहने कि याद दिला दी...एक बार फिर पुलिस बाबा के सामनें बैकफुट पर नजर आई...पर आश्रम में बैठा बाबा फ्रंटफुट पर जोर दार तरीके से पुलिस के चौके-छक्को छुड़ा रहा है...
मामला बढ़ा तो हिसार हिंसा की आग की आंच दिल्ली तक महसूस की गई...इस कदर महसूस की गई कि आनन फानन में मामले को बढ़ता देख केंद्र को खट्टर सरकार से जवाब मांगना पड़ा खट्टर का जवाब क्या रहा पता नहीं पर पहली बार राजनीतिक राह पर चले हिंसक हिसार वाले हरियाणा की सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हुए मनोहर लाल को बाबा के बवाल पर बैठक बुलानी पड़ी वो भी आपातकालीन बैठक, एमरजेंसी बैठक ..इस आपातकालीन वाली बैठक में क्या बोला गया मालूम नहीं पर हिसार की हिंसा और भी हिंसात्मक हो गई.. कबीर रूप वाले रामपाल के समर्थकों पर पड़ने वाले लाठी डंडे हिसार हिंसा को कवर करने गए कई टीवी पत्रकारों के हिस्से आ गया पत्रकार पीटे तो क्यों नहीं...आखिर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के दूत तीसरे स्तंभ को दानवों के करतूतों को कवर जो कर रहे थे.
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